Month: जून 2017

थोड़ा सुख बांटना

एक सहेली ने घर में बने मिट्टी के बर्तन भेजे l आते समय बहुमूल्य चीजें टूट गईं l एक कप के कुछ बड़े टुकड़े, और टुकड़े और मिट्टी की ढेर l

मेरे पति ने टुकड़ों को जोड़ दिया l मैंने इस जुड़े हुए खूबसूरत कप को सजा दिया l इस छिद्रित-जोड़े हुए मिट्टी के बर्तन समान, मेरे दाग़ भी प्रमाण हैं कि परमेश्वर मुझे कठिन समय से निकाला है, फिर भी मैं मजबूती से खड़ी हो सकती हूँ l सुख का वह प्याला याद दिलाता है कि मेरे जीवन में और मेरे जीवन के द्वारा परमेश्वर का काम दूसरों को उनके दुःख में सहायता पहुँचाती है l 

प्रेरित पौलुस परमेश्वर की प्रशंसा करता हैं क्योंकि वह “दया का पिता और सब प्रकार की शांति का परमेश्वर है” (2 कुरिं. 1:3) l प्रभु हमारे आजमाइशों और दुखों का उपयोग हमें अपने समान बनाने के लिए करता है l हमारे दुखों में उसकी सांत्वना से हम दूसरों को बताते हैं कि उसने हमारी ज़रूरतें कैसे पूरी की हैं (पद.4) l

मसीह के दुखों पर विचार करके, हम अपने दुखों में दृढ़ रहकर, भरोसेमंद हैं कि परमेश्वर हमारे अनुभवों से हमें और दूसरों को धीरजवंत धैर हेतु सामर्थी बनाता है (पद.5-7) l पौलुस की तरह, हम सुख पाते हैं कि प्रभु हमारे संघर्षों को अपनी महिमा के लिए उपयोग करता है l हम उसकी सांत्वना के भागीदार होकर पीड़ितों के लिए आश्वासन भरी आशा ला सकते हैं l

मुस्कराने का कारण

कार्यस्थल में उत्साहवर्धक शब्द अर्थपूर्ण होते हैं l कार्यकर्ताओं का परस्पर संवाद ग्राहक की संतुष्टि, कंपनी का लाभ, और सहकर्मी के मुल्यांकन को प्रभावित करता है l अध्ययन अनुसार  सबसे प्रभावशाली कार्य समूहों के सदस्य एक दूसरे को अस्वीकृति, असहमति, अथवा कटाक्ष के बदले छः गुना अधिक समर्थन देते हैं l

पौलुस ने अनुभव से संबंधों और परिणामों को आकार देने में शब्दों के महत्त्व को सीखा l दमिश्क के मार्ग पर मसीह से मुलाकात से पहले, उसके शब्द और कार्य यीशु के अनुयायियों को आतंकित करते थे l किन्तु थिस्सलुनीकियों को पत्री लिखने तक, उसके हृदय में परमेश्वर के काम से वह महान उत्साहित करनेवाला बन गया था l अब वह अपने नमूने से अपने पाठकों को परस्पर उत्साहित करने का आग्रह किया l चापलूसी से सावधान रहते हुए, उसने दूसरों को स्वीकार करने और मसीह की आत्मा को प्रतिबिंबित करना दिखाया l  

इस प्रक्रिया में, पौलुस अपने पाठकों को उत्साहवर्धन का श्रोत बताता है l उसने पाया कि अपने को परमेश्वर को सौंपने से, जो हमसे प्रयाप्त प्रेम करके क्रूस पर मरकर, हमें सुख देने, क्षमा करने और प्रेरित करने, और परस्पर प्रेम भरी चुनौती देने का कारण देता है (1 थिस्स. 5:10-11) l

पौलुस हमें बताता है कि परस्पर उत्साहित करना परस्पर परमेश्वर का धीरज और भलाई का स्वाद चखने का एक मार्ग है l

परमेश्वर द्वारा मार्गदर्शित

कुछ माह पूर्व मुझे एक ई-मेल द्वारा “मार्गदर्शित लोगों” के समाज का सदस्य बनने का निमंत्रण मिला l मैंने जाना कि मार्गदर्शित  शब्द का अर्थ है, लक्ष्य प्राप्ति हेतु परिश्रम करनेवाला उच्च प्रेरित व्यक्ति l 

क्या मार्गदर्शित व्यक्ति होना अच्छा है?  एक अचूक जांच है : “परमेश्वर की महिमा के लिए सब कुछ करें” (1 कुरिं. 10:31) l कितनी बार हम अपने गौरव के लिए करते हैं l नूह के दिनों में जल-प्रलय पश्चात, लोगों का एक समूह “[अपने नाम] के लिए एक गुम्मट बनाना चाहा (उत्प.11:4) l वे प्रसिद्धि चाहते थे और वे संसार में फैलना नहीं चाहते थे l इसलिए कि वे परमेश्वर की महिमा के विरुद्ध कर रहे थे, भले ही, उनको गलती से मार्गदर्शित किया गया l

इसके विपरीत, जब राजा सुलेमान ने वाचा का संदूक और नया निर्मित मंदिर समर्पित किया, उसने कहा, “मैं [ने] ... परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है” (1 राजा 8:20) l तब उसने प्रार्थना की, “वह हमारे मन अपनी ओर ऐसा फिराए रखे कि हम उसके सब मार्गों पर चला करें” (1 राजा 8:58) l

जब हमारी महानतम इच्छा परमेश्वर की महिमा और उसकी आज्ञाकारिता है, हम मार्गदर्शित, आत्मा की अगुवाई में उसके प्रेम के खोजी और उसकी सेवा करनेवाले होते हैं l  हम सुलेमान की प्रार्थना करें, हमारे “मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ... लगा रहे, कि ... [हम] उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएँ मानते [रहें]” (पद.61) l

एक सिद्ध पिता

मेरे पिता ने एक बार मेरे सामने स्वीकार किया, “जब तुम उम्र में बढ़ रहे थे, मैं बहुत बार घर पर नहीं होता था l”

मुझे यह याद नहीं l अपनी पूर्ण-कालिक सेवा के अलावा, वे चर्च संगीत मण्डली की अगुवाई करने, और कभी-कभी पुरुषों के चार लोगों के गायन समूह के साथ एक-दो सप्ताह के लिए बाहर जाते थे l किन्तु वे मेरे समस्त ख़ास पलों में (और अनेक छोटे पलों में) उपस्थित रहते थे l

जैसे, आठ वर्ष की आयु में, मुझे एक दोपहर स्कूल में एक छोटी भूमिका निभानी थी l सभी माताएँ आयीं, किन्तु केवल मेरे पिता l अनेक छोटे तरीकों से, उन्होंने हम बच्चों को जताया कि हम उनके लिए विशेष हैं और वे हमसे प्यार करते हैं l और उन्होंने माँ के अंतिम दिनों में कोमलता से उनकी सेवा करके स्वार्थहीन प्रेम प्रगट किया l पिता सिद्ध नहीं हैं, किन्तु उन्होंने मुझे हमेशा मेरे स्वर्गिक पिता की अच्छी झलक प्रस्तुत की है l और आदर्श रूप से, एक मसीही पिता को ऐसा ही करना चाहिए l

कभी-कभी सांसारिक पिता अपने बच्चों को निराश करते अथवा पीड़ित करते हैं l किन्तु हमारा स्वर्गिक पिता “दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है” (भजन 103:8) l प्रेम करनेवाले पिता अपने बच्चों को ताड़ना, सुख, निर्देश देकर, और प्रावधान करके, हमारे सिद्ध स्वर्गिक पिता का नमूना प्रस्तुत करते हैं l

मिलकर समय बिताना

एक परिजन के विवाह से कार में लौटते समय दो घंटे की यात्रा में, मेरी माँ तीन बार मुझसे पूछी कि मेरे काम में नया क्या है l मैं उनको कुछ ख़ास बातें बतायीं जैसे मैं पहली बार बता रही थी, जबकि सोचती रही कि मेरे कौन से शब्द संभवतः  यादगार बन सकते हैं l मेरी माँ स्मरण शक्ति नष्ट करनेवाली मानसिक रोग से पीड़ित है, जो गंभीर रूप से व्यवहार को प्रभावित करके बोलचाल की शक्ति के साथ और भी हानि कर सकता है l

माँ की बीमारी पर मैं दुखित होती हूँ किन्तु मैं उनके जीवित रहने और हमारे साथ समय बिताने और बात करने के लिए धन्यवादित हूँ l मैं उनसे मिलकर उत्तेजित होती हूँ क्योंकि वह आनंदित होकर कहती है, “एलिसन, कितना खूबसूरत आश्चर्य!” हम एक दूसरे की संगति का आनंद लेते हैं और उनकी खामोशी में भी, संगति करते हैं l

यह परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध की छोटी तस्वीर है l बाइबिल हमें बताती है, “यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्न होता है, अर्थात् उन से जो उसकी करुणा की आशा लगाए रहते हैं" (भजन 147:11) l परमेश्वर यीशु को अपना उद्धारकर्ता माननेवालों को अपनी संतान कहता है (यूहन्ना 1:12) l और यद्यपि हम शब्दों की कमी के कारण बार-बार वे ही निवेदन करते हैं, वह धीरजवंत है क्योंकि वह हमसे प्रेम सम्बन्ध रखता है l उससे प्रार्थना में शब्दों की कमी में भी वह खुश होता है l

जीवित किये गए

मेरे पिता अपने युवावस्था में मित्रों के एक समूह के साथ शहर के बाहर एक स्पोर्ट्स कार्यक्रम में जा रहे थे जब उनकी कार के पहिये गीली सड़क पर फिसल गए l उनके साथ गंभीर दुर्घटना हुई l एक मित्र को पक्षघात हो गया और दूसरे की मृत्यु l मेरे पिता को मृत घोषित करके लाश-घर में रख दिया गया l उनके स्तंभित और शोक-संतप्त माता-पिता उन्हें पहचानने पहुँचे l किन्तु मेरे पिता उस गहरे कोमा से वापस पुनर्जीवित हो गए l उनका विलाप आनंद में बदल गया l

इफिसियों 2 में, प्रेरित पौलुस हमें याद दिलाता है कि मसीह से अलग हम “अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे” (पद.1) l किन्तु हमारे लिए उसके महान प्रेम के कारण, “परमेश्वर ने जो दया का धनी है, ... जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे तो हमें मसीह के साथ जिलाया” (पद.4-5) l मसीह के द्वारा हमें मृत्यु से जीवन में लाया गया है l

तो एक भाव में, हम सभों के जीवन का श्रोत स्वर्गिक परमेश्वर है l उसके महान प्रेम के द्वारा, उसने उनको जो पापों में मृत थे उसके पुत्र के द्वारा जीवन और उद्देश्य को संभव किया l

शांति का मेल

एक विषय पर विचारों में अंतर होने पर मैंने ई-मेल द्वारा अपनी सहेली का सामना किया किन्तु उसने उत्तर नहीं दिया l क्या मैंने हद पार कर दी थी? मैं उसको परेशान करके स्थिति को और बदतर नहीं बनाना चाहती थी, और उसकी विदेश यात्रा से पूर्व समस्या का समाधान चाहती थी l आनेवाले कुछ दिनों तक उसकी याद आने पर, मैंने आगे की बातें न जानते हुए भी उसके लिए प्रार्थना की l तब एक दिन स्थानीय पार्क में घूमते हुए मैंने उसे देखा l जब उसने मुझे देखा उसके चेहरे पर दर्द था l “प्रभु धन्यवाद, कि मैं उससे बातें कर सकती हूँ, मैं धीरे से बोलकर इच्छित हृदय से उसकी ओर बढ़ी l हम दोनों खुलकर बातें किये और समस्याएँ सुलझ गयीं l

कभी-कभी हमारे संबंधों में जब तकलीफ और खामोशी आ जाती है, उनको ठीक करना हमारे नियंत्रण से बाहर महसूस होता है l किन्तु जिस तरह प्रेरित पौलुस इफिसुस की कलीसिया को लिखता है, कि हमें अपने संबंधों में परमेश्वर की चंगाई को ढूंढते हुए, परमेश्वर की आत्मा द्वारा शांति और एकता के लिए, दीनता, नम्रता, और धीरज को धारण करने के लिए बुलाया गया है l प्रभु हममें एकता चाहता है, और उसकी आत्मा द्वारा वह अपने लोगों को एक कर सकता है-अनपेक्षित रूप से भी जब हम पार्क में घूमने जाते हैं l

अनुग्रह के लय

विवाह के छियासठ वर्ष पूरे करके, नब्बे वर्षीय मेरा एक मित्र और उनकी पत्नी, ने अपने बच्चों, नाती-पोंतों और आनेवाली पीढ़ियों के लिए अपना पारिवारिक इतिहास लिखा l अंतिम अध्याय, “माता और पिता की ओर से एक पत्र,” में सीखे गए महत्वपूर्ण जीवन-पाठ हैं l एक से मैंने अपने जीवन-सूची पर विचार किया : “यदि आपको महसूस हो कि मसीहियत आपको थकाकर ऊर्जा छीनता है, तो आप यीशु मसीह के साथ सम्बन्ध का आनंद न लेकर धर्म का अभ्यास कर रहे हैं l प्रभु के साथ आप थकेंगे नहीं, वह आपको स्फूर्तिदायक, सामर्थी और क्रियाशील करेगा” (मत्ती 11:28-29) l

युजिन पिटरसन की व्याख्या अनुसार इस परिच्छेद में यीशु का निमंत्रण निम्नांकित है, “क्या तूम थककर टूट गए हो? धर्म को मानते हुए अक्रियाशील हो गए हो? ... मेरे संग चलो और काम करो ... अनुग्रह के सहज लय सीखो” (The Message) l

यह सोचकर कि परमेश्वर की सेवा मेरे ऊपर है, मैं उसके साथ  न चलकर, उसके लिए  काम करना आरंभ कर देता हूँ l एक महत्वपूर्ण अंतर है l मसीह के साथ नहीं चलने से, मेरी आत्मा सूखकर भंगुर हो जाती है l लोग मुसीबत हैं, परमेश्वर के स्वरुप में बनाए गए संगी मनुष्य नहीं l कुछ सही नहीं दिखता l

महसूस करके कि मैं यीशु के संग सम्बन्ध का आनंद न लेकर धर्म का अभ्यास कर रहा हूँ, अपना बोझ उतारकर उसके अनुग्रह के सहज लय” में उसके साथ चलने का समय है l

बादलों पर विचार करें

बहुत वर्ष पहले एक दिन मेरे पुत्र और मैं आंगन में पीठ के बल लेटे हुए बादलों को तैरते हुए देख रहे थे l एक ने पूछा, “पिताजी, बादल क्यों तैरते हैं?” “देखो बेटा,” अपने व्यापक ज्ञान का लाभ देने के विचार से मैं बोलना चाहा, किन्तु शांत हो गया l “मैं नहीं जानता,” मैंने मान लिया, “किन्तु मैं तुमको बताऊंगा l”

मुझे उत्तर मिला, कि सघन नमी, भारीपन के कारण, भूमि से उठते गरम तापमान से मिलती है l उसके बाद नमी वाष्प में बदलकर हवा में ऊपर उठती है l यह घटना की स्वाभाविक व्याख्या है l

किन्तु स्वाभाविक व्याख्या अंतिम उत्तर नहीं है l परमेश्वर ने अपनी बुद्धि में प्राकृतिक नियम को इस तरह निर्देशित किया है कि वह “सर्वज्ञानी के आश्चर्यकर्म” प्रगट करता है (अय्यूब 37:16) l तब बादल एक प्रतिक हो सकता है-सृष्टि में परमेश्वर की भलाई और अनुग्रह का दृश्य और प्रगट चिन्ह l

तो किसी दिन जब आप समय निकालकर बादलों में छवि की कल्पना करें, इसे याद रखें : सब खूबसूरत वस्तुओं का बनानेवाला बादलों को हवा में उड़ाता है l वह ऐसा करके हमें आश्चर्य और आराधना में झुकाता है l आसमान-मेघपुंज, फैले हुए बादल, और हलके सफ़ेद बादल-परमेश्वर की महिमा घोषित करते हैं l